“डमार बचाओं आंदोलन”
भारत के सबसे गौरवशाली इतिहास वाले राज्यों में से एक गाँधी के कर्मभूमि बिहार के चम्पारण बिक्रमपुर डमार इतिहास के पन्नो से गायब है, जो की मुगल काल से जुड़ा है। रामायण काल मे भगवान राम माता सीता के साथ जनकपुर से शादी के बाद अयोध्या लौटते समय पूरे बारात के साथ यहा विश्राम किए थे। अंग्रेजी हुकूमत के समय भेलवा, चिरैया, पुरनहिया (घोड़ासहन) एव अन्य आसपास के जितने भी कोठी पर घोड़ा हुआ करता था, उसे सप्ताह में एक बार घुड़दौल रेस कराया जाता था, नील की खेती से जुड़ा निलहों का शोषण, किसान या अन्य बंदी बनाये गए निर्वासित लोगो के साथ इसी मैदान के निर्वासित कैम्प में हाथ - पैर बांध कर तेज धूप में घंटो यातना सजा दी जाती थी। हाल ही में वीरांगना राधा कुमारी पटेल की अध्यक्षता में “डमार बचाओं आंदोलन” 2 अक्टूबर 2022 हुई जिसके संयोजक रंगकर्मी वीर सिकंदर ए आज़म और मुख्य अतिथि वीर बी. डी. राम थे, जिसमे हजारो हजार की संख्या में लोगो ने भाग लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाया इस आंदोलन मे भाग लेने वाले सबसे ज्यादा उम्र 109 वर्ष के वीर जयनारायण सिंह और सब से कम उम्र 6 वर्ष के वीर राजन कुमार पटेल था।
पूर्वी चम्पारण जिले के ढाका प्रखंड अंतर्गत गहई - बिक्रमपुर डमार जो लगभग 14 एकड़ का भूखंड पर फैला है, जो यहाँ के आम जानता कि ऐतिहासिक एवं सामाजिक धरोहर है, इस मैदान पर लगभग 10 -12 गांव की बहुत बड़ी आबादी महिला, पुरूष, नौजवान, बुजुर्ग सुबह मे टहलते एवं योगाभ्यास करते है। इस मैदान के आस पास मे दो सरकारी स्कूल, एक कॉलेज, दो प्राइवेट स्कूल है, उतर साइड मे शमसान है, और नागपंचमी के शुभ अवसर पर 4 - 5 गावँ का महाविरी झंडा मेला लगता है। मैदान के उतरी छोर पर मठ बाजार लगता है, हनुमान जी का मठ एवं समाधि स्थल है जिसका लगभग 300 साल पुरानी इतिहास है, वही दक्षिण छोड़ पर हनुमान जी का मंदिर / मठ है, जो आज से लगभग 25 वर्ष पूर्व श्री श्री 108 मनमोहन दास जी द्वारा महायज्ञ हुआ था जिसे महावीर जी की मंदिर के रूप मे पूजा पाठ होने लगा जिसे असामाजिक तत्वो द्वारा तोड़ दिया गया। यहाँ कई वर्षो से हिन्दुओ के लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा होती आ रही है। यह तीन प्रखंड ढाका, चिरैया एवं घोड़ासहन का संधिस्थल है। यह मैदान ही यहाँ के बच्चो का भविष्य है, इस मैदान पर पूर्वाभ्यास कर प्रति वर्ष सैकड़ो बच्चे सेना में बहाल होते है। यह एकलौता इलाके का गवई पार्क है, जो बहूउपयोगी है।
इस भूखंड पर कुछ असामाजिक तत्वो के लोग एवं भूमाफिया का नजर वर्षों से थी जिसे हमारे पूर्वजों ने नाकाम कर दिया था, किन्तु हाल ही के दिनों मे कुछ असामाजिक तत्वों का नजर इस भूखंड पर पुनः पड़ा और इसे हड़पने या कब्जा करने के लिए तरह - तरह के हथकंडे अपनाने लगे। इस भूखंड को भूमाफ़ियों द्वारा चमड़ा फ़ैकट्री लगाने के लिए आवंटन करा लिया, जिसको लेकर ग्रामीणों द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर 2022 को धारणा प्रदर्शन किया गया। जिसको देखते हुए तत्कालीन पूर्वी चम्पारण (मोतिहारी) जिलाधिकारी श्री शीर्सत कपिल अशोक द्वारा निरस्त कर दी गई।
भूमाफिया के नजरों मे 14 एकड़ जमीन अभी भी दिख रहा था और अब एक नई कहानी पुनः शुरू हुई कचड़ा घर / कचड़ा प्रबंधन का, जिसका ग्रामीणों ने पुनः विरोध किया और कचड़ा घर बनना अधर मे रह गया। ग्रामीणों का कहना था की डमार हमारा समाजिक धरोहर, हमारी पहचान है इसे सुरक्षित रहने दिया जाय। विदित हो की यह जगह बहुउपयोगी रमणीय जगह है।
एक साजिस के तहत डमार बचाओं आंदोलन के सैकड़ों वीर योद्धाओ पर केस हुए जिसमे 4 वीरो को जेल जाना पड़ा और एक वीर को अपनी जान गवानी पड़ी। हजारों हजार की संख्या मे आम जनता डमार बचाओ आंदोलन मे भाग लिए वीर रामदर्शन सिंह की भूमिका वीर कुवर सिंह के जैसा दिखा ये 75 वर्ष के उम्र मे जेल गए जहा इनकी तबीयत बहुत खराब हो गई और मरते मरते बचे, जेल से बाहर आते ही हार्ट सर्जरी करना पड़ा। यही क्रांतिकारी बाबा वीर उपेन्द्र सिंह, वीर मंजर आलम को जेल जाने के कारण सरकारी शिक्षक की नौकरी से निलंबित होना पड़ा। कुछ महनों बाद वीर रामलाल सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। एक दिन अचानक सुबह सुबह पुलिस द्वारा घर नाकाबंदी कर वीर होतीलाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया जिससे ग्रामीण उग्र हो गए और पुलिस के गाड़ी को घेर कर पुलिस के कब्जे से छुड़ा लिया। सैकड़ों पुरुष महिला को कड़ाके की ठंड मे घर परिवार देश छोड़कर पास के पड़ोसी देश नेपाल मे शरण लेनी पड़ी। वीर अच्छेलाल सिंह पड़ोसी देश नेपाल मे शरण लेने वाले सबसे अधिक उम्र के बुजुर्ग है। अंततः सभी लोग वीरता का परिचय देते हुए लाख मुसीबत झेलने के बावजूद डमार को बचाया जिसके कारण इन वीरों को अब आदरसूचक शब्द वीर से सम्बोधन करते है।